पंडित गजानंदजी को जीवित करना--
पंडित चंपालाल श्री दादाजी के अनन्य भक्त थे। उनका निवास स्थान खेड़ी घाट के पास में था उनका एक लड़का था जिसका नाम गजानंद था लड़के की 6 वर्ष की उम्र में अचानक किन्हीं कारणों वश मृत्यु हो गई। अंतिम संस्कार जमीन में गाड़ कर दिया गया। दूसरे दिन श्री चंपालाल जी श्री छोटे दादाजी के पास खंडवा आकर बालक हेतु विनती करने लगे। चम्पालालजी बोले अब में घर कैसे जाऊं, मैं गुरु महाराज के दर्शन करने आया और दर्शन करने के बाद घर जाकर देखा तो मेरा लड़का शांत हो गया था। अब मैं घर नहीं जाऊंगा मुझे मेरा लड़का यही चाहिए। तब श्री दादाजी महाराज ने लड़के को गाड़ी हुई जगह से निकलवा कर लाने को कहा। चंपालाल जी बालक को निकालकर कपड़े में लपेटकर खंडवा में धूनी के पास लाकर रख दिया। फिर श्री दादाजी ने भंडारी से मालपुआ लाने को कहा एक मालपुआ श्री दादाजी महाराज ने मुंह में चबाया और वही मालपुआ चंपालाल जी को देकर कहा, खिलादे इसे, मोड़ा भूखा है। मालपुए का रस बच्चे के मुंह में जाते ही बच्चा पुनः जीवित हो गया बच्चे की आंख खुल गई श्रीदादाजी ने चंपालाल जी को कहा यह बालक तेरी सेवा करेगा और उस बालक ने 36 वर्ष तक माता पिता की सेवा की। श्री दादाजी महाराज की दया से कक्षा चार तक पढ़ा हुआ बालक वेद मंत्र यज्ञ अनुष्ठान का ज्ञाता हुआ।
पंडित राम किशन की लड़की को जिंदा करना--
श्रीराम किसन महाराज छनेरा के रहने वाले थे वह श्री दादाजी दरबार में भागवत कथा करते थे। पंडितजी श्री दादाजी की खूब सेवा करते थे। उनकी एक लड़की थी जिसका नाम नर्मदा था वह लगभग 8 से 10 साल की हो गई थी एक दिन अचानक उसे खूब जोर से बुखार आया और दूसरे दिन रात में वह शांत हो गई। पंडिताईन रात भर रोते रही। प्रातःकाल 5:00 बजे श्री छोटे दादाजी ने छोटेलाल जी को बुलावाया और बोले छोटा पंडित की लड़की शांत हो गई है। श्री छोटे दादाजी ने चांदी के गिलास में गंगाजल दिया और बोले लड़की का मुंह खोल कर पिला देना। गंगाजल जब लड़की को पिलाया तो लड़की अचानक जीवित हो रोने लगी। फिर काफी लंबे समय तक जीवित रही। पंडित जी प्रायः श्री हरिहर भोले भगवान जी को श्रीमद् भागवत कथा सुनाया करते थे। तब भगवान जी उनको छड़ी से स्पर्श कर कहते थे कि श्रीमद् भागवत के प्रवचन में भक्तों को इस श्लोक का अर्थ इस तरह समझाना क्योंकि मैं महाभारत में अर्जुन के रथ का सारथी था। श्री राम किशन जी सोचते थे कि श्री हरिहर भोले भगवान तो मेरे सामने अभी कलयुग में यहां बैठे हैं और बात द्वापर युग की बता रहे हैं। परंतु मैं हरिहर भगवान के इस बात को नहीं समझ पाया कि वह साक्षात विष्णु का अवतार है। यह बात कहते हुए उनकी आंखों से अश्रुपात होता था। और वह कहते थे कि जब व्यक्ति को माया व्याप्त रहती है तब तक वह ना दादाजी के स्वरूप को और ना ही श्री हरीहर भोले भगवान के स्वरूप को जान पाता है।
श्री छोटे दादाजी द्वारा भक्त मौनी को दिव्य दर्शन--
श्री बड़े दादाजी महाराज तो साक्षात शिव के अवतार थे। उनकी वाणी और जितने भी क्रियाकलाप नर तन काया से होते थे उनका अर्थ या संकेत केवल श्री छोटे दादाजी ही भक्तों को समझा पाते थे। ऐसा ही एक किस्सा श्री बड़े दादाजी के अनन्य भक्त मौनी जी के साथ हुआ। भक्त मौनी को श्री बड़े दादाजी ने कहा जा महालक्ष्मी के दर्शन कर आ। श्री छोटे दादाजी मौनी की भक्ति से बहुत प्रसन्न थे अतः उनको अपने असली स्वरूप का दर्शन कराना चाहते थे। श्री छोटे दादाजी हमेशा की तरह गढ़ी के नीचे विराजमान थे और भक्तों से घिरे हुए थे। तभी श्री हरिहर भोले भगवान जी ने मौनी से पूछा क्या हुआ मौनी कहां जा रहा है? भक्त मौनी ने कहा श्री बड़े दादाजी ने महालक्ष्मी के दर्शन की आज्ञा दी है मैं महालक्ष्मी के दर्शन के लिए मुंबई जा रहा हूं। ऐसा श्री हरिहर भोले भगवानजी ने मौनी के साथ हंसते हुए तीन बार पूछा तब तीसरी बार में मौनी ने झल्लाकर उत्तर देने के लिए भगवान की ओर देखा तो उन्हें श्री हरिहर भोले भगवान जी की जगह साक्षात शेष शैया पर भगवान विष्णु के दर्शन हुए। वे बाद में मौनी बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुए और हरिद्वार के पास ऋषिकेश में अपना आश्रम बनाकर रहने लगे।वह हमेशा मौन रहते थे वह केवल श्री दादाजी और श्री हरिहर जी भगवान से ही बात करते थे।
एक बार मौनी बाबा ने श्री छोटे दादाजी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया,श्री छोटे दादा जी धुनी पर बैठे थे और उन्होंने मौनी बाबा से कहा कि मौनी अपने दोनों पैर धूनी में डाल दो। मौनी बाबा ने अपनी संसारी बुद्धि लगाई और सोचा पहले एक पैर डालता हूं ताकि एक पैर तो कम से कम बचा रहे। इस तरह उसके मन में गुरु आज्ञा के प्रति संशय हो गया। जब एक पैर नहीं जला तो मौनी बाबा ने दूसरा पर डालने के लिए आगे बढ़ाया तब छोटे दादाजी ने कहा अब दूसरा पैर मत डालना। गुरु की आज्ञा में संशय उत्पन्न हुआ है। उज्जैन के महाकुंभ मेले में अचानक एक ट्रक के नीचे आने से मौनी बाबा का एक पैर कुचल गया। दूसरा पैर जो धूनी में डाला था वह बच गया। मौनी बाबा अक्सर बैसाखी लेकर हरिद्वार में गंगा स्नान करने के लिए जाया करते थे।
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श्री हरिहरजी भोले भगवान |
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