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श्री छोटे दादाजी की लीलाएँ भाग-२

भगवान हो तो पानी बरसाओ--      

         सन 1941 की बात है खंडवा के नामी वकील श्री सुब्बा राव जी की पत्नी खंडवा में श्री दादाजी दरबार आई और श्री दादाजी से शिकायत करने लगी। यदि आप भगवान हो तो हमारी सुनो। खंडवा में पानी नहीं बरस रहा है आप पानी बरसाओ। श्री हरिहर भोले भगवानजी बोले वैसे तो मैं सन्यासी ठहरा।  तुमको ज्यादा ही है तो दो आने का गूगल और आठ आने का सिंदूर ले आ। वह महिला शिकायत के बाद श्री दादाजी महाराज की बात की ओर ध्यान न देकर वहां से चली गई। मगर श्री दादाजी ने उस स्थान पर  बैठकर गूगल और सिंदूर बुलाकर हवन किया और देखते ही देखते बहुत जोरों की बारिश शुरू हो गई। बारिश भी ऐसी कि 3 दिन तक के नहीं रुकी।

श्री छोटे दादाजी की परीक्षा--
           श्री नर्मदा प्रसाद पांडे सीआई सीहोर और उनके एक मित्र चौबे जी के मन में श्री छोटे दादाजी की परीक्षा लेने का विचार आया और दोनों श्री दादाजी दरबार खंडवा आए उन्होंने सोचा यदि श्री दादाजी अंतर्यामी है तो हमारे प्रश्नों का उत्तर हमारे पूछे बिना ही बता देंगे।
पहला अनुभव दोनों मित्रो का--
            सुबह का समय था अनेक स्त्री पुरुष नाना प्रकार के भोजन पदार्थ लिए हुए श्री दादाजी के सम्मुख खड़े थे एक महिला भक्त जो सामने भोजन की थाली लिए खड़ी थी श्री भगवान जी ने कहा अच्छा तू अपनी थाली यहां रख दे मुझे बहुत भूख लगी है और फिर भगवान ने भोजन करते हुए महिला से पूछा तूने तो भोजन बनाते समय सोचा था कि मेरे लिए नींबू का अचार भी लाएगी लेकिन आचार क्यों नहीं लाई। महिला बोली हां भगवान जी मैंने यह बात सोची थी किंतु भोजन लाते समय अचार की हंडी ही नहीं मिली। भगवान जी ने कहा अचार के लाल रंग की हड्डी तो कल सुबह तूने जो के के दाहिने तरफ रख दी थी महिला बोली हां दादा जी अब याद आया कल मैंने ही वहां रख दी थी अब भगवान जी ने पूछा अच्छा तो यह मुझे कैसे मालूम हुआ। भगवान जी बोले मैंने तुम्हारा घर भी नहीं देखा। अब सब भक्त वहां खड़े हुए ध्यान से भगवान जी की बात सुन रहे थे। भगवान ने कहा मैं सब बातें इसलिए जानता हूं क्योंकि मैं इस शरीर में और उस बर्तन में इस आश्रम में उस मकान में तथा इस विस्तृत व ब्रह्माण्ड में और इसके बाहर सर्वव्यापी हूं। सब को सब ओर से देखता और जानता हूं इसके बाद भगवान ने हम दोनों की ओर मुस्कुराते हुए देखा और पास में पड़ी फूलमाला हमारे ऊपर फेंक दी। जो सीधे हम दोनों मित्रों के गले में आ गई। फिर सब भक्तों ने जमीन पर लेट कर भगवान जी को प्रणाम किया और फिर आश्रम मैं श्री दादाजी के जयकारे होने लगे और श्री राधा जी दरबार जय घोष से गूंज उठा।
दूसरा अनुभव दोनों मित्रों का---
          मिठाई का एक टोकरा भगवान के सामने रखा है भगवान जिस की ओर इशारा करते हैं उसे प्रसाद दे दिया जाता दर्शकों में एक महिला को छोड़कर बाकी सब को प्रसाद दिया गया उस महिला ने हाथ जोड़कर कहा भगवान जी मुझे भी मिठाई दिलवा दीजिए मुझे बहुत भूख लगी है तब भगवान जी ने कहा मैंने तो दो दिन से कुछ भी नहीं खाया है मुझे तो भूख नहीं लगी और तू तो कल रात को भोजन कर चुकी थी फिर भी सुबह से ही तुझे भूख लग आई। श्री दादाजी बोले भूख तो नहीं लगी लेकिन तूने सुबह मुंह धोते समय यह सोचा कि श्री दादाजी के पास बैठने से मिठाई इत्यादि स्वादिष्ट भोजन तो मिल ही जाता है फिर दाल रोटी बनाने का परिश्रम क्यों करूं। किंतु हम किसी को आलसी नहीं बनाना चाहते हैं। अच्छा अब सुन जब मुझे भूख लगेगी तब तुझे भी खाने को दूंगा। इस बात पर महिला बोल उठी। श्री दादाजी आप तो ईश्वर है आपको भूख क्यों लगेगी। श्री दादाजी बोले मैंने ईश्वर को देखा अवश्य है हम शंकर के लड़के हैं और यहां इसलिए बैठे हैं कि जब कोई ईश्वर के दर्शन की इच्छा लेकर हमारे पास आ जाए तब हम उसे श्री दादाजी के सामने खड़ा करके और उनसे कह देते है कि यह लड़का आया है इसके अतिरिक्त हमारे संसार में आने का कोई और उद्देश्य नहीं है।
  
      

श्री छोटे दादाजी महाराज

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